Login
Forgot your password?

CBSE Affiliation Number - 2132982

प्रधानाचार्य संदेश

संतराम द्विवेदी

प्रधानाचार्य


शिक्षा संस्कार की एक प्रक्रिया है | आधुनिक शिक्षा प्रणाली में संस्कार सिद्धान्त की घोर उपेक्षा की जा रही है | शिक्षा प्रणाली को ज्ञान व बुद्धि के साथ-साथ नैतिक चरित्र एवं सांस्कृतिक व्यक्तित्व विकास परक होना चाहिए | शिक्षा ज्ञान की साधना है | ज्ञान आत्मा का प्रकाश है | आत्मा के अनावरण से ही ज्ञान का प्रकटीकरण होता है | इस अंतर्निहित ज्ञान-शक्ति को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है |


‘शिक्ष’ धातु से शिक्षा शब्द बना है जिसका अर्थ है विद्या ग्रहण करना | शिक्षा का उददेश्य संक्षेप में शिक्षार्थी को पूर्ण मानव बनाना है | पूर्ण मानवता का अर्थ है मानव में अधिभौतिक और अध्यात्मिक वाद का पूर्ण समन्वय, सामंजस्य और संतुलन | आध्यात्मिकता के अभाव या असुंतलन से मानव दानव हो जाता है और वह समाज के लिए आतंकप्रद बन जाता है | उससे सामाजिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है |


जीवन जीना एक बात है और विशिष्ट जीवन जीना दूसरी बात है | ऐसा जीवन, जो दूसरो के लिए उदाहरण बन सके विशिष्ट जीवन होता है | ऐसा जीवन, जो विकास की सब सम्भावनाओ को उजागर कर सकता है विशिष्ट जीवन होता है | जीवन के निर्माण में अनेक तत्वों का योग रहता है | उनमे से कुछ तत्व है-संस्कार, वातावरण, माँ का व्यक्तित्व और शिक्षा आदि |


वास्तव में वही शिक्षा है जो जीवन का निर्माण कर सके | जीवन के समग्र विकास की द्रष्टि से शिक्षा को रचनात्मक मोड़ देने के लिए आवश्यक है निर्धारित पाठ्यक्रम के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाये | विशिष्ट प्रशिक्षण के क्रम में-जीवन मूल्यों की शिक्षा,मानवीय सम्बन्धो की शिक्षा, भावनात्मक विकास की शिक्षा एवं सिद्धान्त एवं प्रयोग के समन्वय की शिक्षा |


शिक्षा से ही बालक में जिज्ञासा उत्पन्न होती है | जिज्ञासा से हि बालक प्रत्येक बात को बारीकी के साथ ग्रहण करता है और उसमे कुछ करने की इच्छा जागती है जो बालक को अखण्ड व्यक्तित्व प्रदान कर सकती है | यही जीवन विज्ञान है | जीवन विज्ञान ऐसी कला है जो बौद्धिक एवं भावनात्मक विकास में संतुलन लाती है |


यहां तक पहुंचने के लिए बालक के लिये माता से बढ़कर प्राम्भिक शिक्षा देने वाला कोई गुरु नहीं हो सकता है | माँ चाहे तो बालक को संस्कार सभ्यता, संस्कृति की शिक्षा देते हुए एवं मदालसा की तरह शिक्षा के वास्तविक उददेश्य आत्मज्ञान की शिक्षा देकर बालक के जीवन को अध्यात्मिक बना सकती है | अध्यात्मिक नागरिक ही घर परिवार एवं समाज का विकास कर सकता है | अत: देश के विकास के लिये बालक की शिक्षा की विकास का संकल्प हम सभी को लेना चाहिये |



प्रबन्धक संदेश

डा० सुनील कुमार मिश्र

प्रबन्धक


शास्त्रों का कथन है-“क्रतुमयोअयं पुरुष:” अर्थात मनुष्य क्रतुमय है- स यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते तदमिसम्पघते|” अर्थात् मनुष्य जैसा संकल्प करता है वैसा ही आचरण करता है,जैसा आचरण करता है वैसा ही बन जाता है|” अतः मनुष्य को अच्छे विचारो का संकल्प करना चाहिये| अच्छे विचारों के संकल्प से ही अच्छे चरित्र का निर्माण होता है| बुरे विचारो और बुरी संगति का पूर्ण रूपेण परित्याग कर देना चाहिये| बहुत से लोग बुरे विचारो व बुरी संगति के घेरे में फंसकर चाहते हुए भी अपने कदाचरण प्रवृत्ति एवं चरित्र हीनता से मुक्त नहीं हो पाते है| बार-बार प्रतिज्ञा करते है और भग्न प्रतिज्ञा हो जाते है| जैसे नशे के आदि एवं अन्य व्यसनों में लिप्त मनुष्य चाहकर भी दुर्विचारो की इस निमग्नता एवं कुसंगति के राग वश बार-बार- हत प्रतिज्ञा हो जाते है|


यह निर्विवाद है कि मानव जीवन ही सर्वोत्तम जीवन है| मानव जीवन की श्रेष्ठता शारीरिक सौष्ठव या आर्थिक वैभव सम्पन्नता से नहीं अपितु चारित्रिक उन्नति से होती है| चारित्रिक रूप से उन्नतिशील मनुष्य ही समस्त उन्नतियो को प्राप्त करने में समर्थ होता है| चारित्रिक उन्नति का संपादन करना ही मनुष्य का परम लक्ष्य, परम कर्तव्य एवं परम धर्म है| किसी सुभाषितकार ने लिखा है-


न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाणमिति में मति: |
अन्तेष्वपि हि जातानां वृत्तमेव हि विशिष्यते |


बच्चो को संस्कारित बनाने के लिये अभिभावक, अध्यापक और बालक तीनो को ही प्रयास करना होगा|


चरित्रहीन व्यक्ति का कुल श्रेष्ठ होने पर भी वह निम्न श्रेणी का समझा जाता है और नीच कुल में उत्पन्न मनुष्य का चरित्र श्रेष्ठ है तो वह श्रेष्ठ माना जायेगा|


चरित्र का अर्थ होता है स्वभाव,व्यवहार आचरण अथवा जीवन का वह कार्य जिसमे मानव की योग्यता, मानवता, कर्तव्य परायणता आदि का घोतन होता है| इसी अर्थ में चरित्र एवं चारित्र्य आदि शब्दों का प्रयोग होता है| विश्व का इतिहास साक्षी है कि चारित्रिक सद्गुण होने पर हि कोई व्यक्ति महापुरुष होता है| ऋषि, मुनि, शिष्ट, आप्त एवं साधुसन्त महात्मा के धर्मशास्त्रनुकूल आचरण हि सदाचरण या सच्चरित्र है और ऐसे सच्चरित्र वाले पुरुष भी सच्चरित्र है|


चरित्रवान व्यक्ति सागर की तरह गम्भीर, धारिणी की तरह धैर्यवान, सूर्य के सामान तेजस्वी,चंद्रमा के सामान शीतल, पुष्पों के सामान कोमल एवं वज्रवत कठोर होता है| अनेक विपत्तियों के आने पर भी वह अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता है| वस्तुत: जितेन्द्रियता ही चरित्र बल है| सच्चरित्रा उत्तम कार्यो और भावो की प्रेरक शक्ति है| अत: इसमें सभी मानवोचित गुणों, सौदार्य, ह्रदय की विशालता, त्याग, सेवा, क्षमा, शक्ति,विनय, सत्य, ईमानदारी, धैर्य, कर्तव्य, परायणता एवं आत्म संयम आदि का पूर्ण समावेश है| नेपोलियन बोनापार्ट की शिक्षा थी-Be a man of action and character (कर्मशील और सदाचारी बनो) भारतीय धर्म ग्रंथो में ह्रदय परिवर्तन और चरित्र निर्माण पर विशेष बल दिया है| इन दोनों से हि मानवता का उदय मन गया है| प्राचीन भारतीय परम्परा में वही शासन सुखद और श्रेष्ठ माना जाता था| जिसमे नागरिक जीवन सच्चरित्र सम्पन्न और सदभावनाओ से भरा हुआ रहा हो| इसी सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध लेखक स्पेंसर ने कहा है-


True criterion of good goverment is not the increase of wealth and population, it is the creation of character and personality.


अर्थात् श्रेष्ठ सफल शासन का अर्थ संपत्ति और मनुष्य की गणना वृद्धि नहीं, अपितु चरित्र बल एवं व्यक्ति का निर्माण है|


अतः हमें सभी को अपने चरित्र निर्माण के लिये द्रढ संकल्पवान होना चाहिये और अपने परिवार में भी सच्चिरत्र वातावरण उत्पन्न करते हुए बालको को चरित्रवान बनने के संस्कारो से विभूषित करने का प्रयत्न ही नहीं बल्कि द्रढ संकल्प करना चाहिये| हम चरित्रवान बनेगे तो घर चरित्रवान होगा| घर चरित्रवान होगा तो सम्पूर्ण देश चरित्रवान होगा| जिससे हमारा देश पुन: परं वैभव को प्राप्त होगा|


विद्यालय की भव्य पत्रिका संकल्प के प्रकाशन पर विद्यालय परिवार, सम्मानित अभिभावकों, आचार्य परिवार एवं भैय्या बहनों को हार्दिक शुभकामनाएं|



अध्यक्ष संदेश

मा० विनीत चन्द्रा

अध्यक्ष


मानव जीवन में संस्कारो की बड़ी महत्ता है | जो मानव सुसंस्कृत संस्कारो से विभूषित है उसमे पावनता, उज्जवलता, सरसता, मधुरता एवं ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रस्फुटित होती है | संस्कार हीन मानव उत्तमोत्तम गुण समूह से वंचित रहता है | संस्कारो के आभाव में मनुष्य पथ विचलित होकरकर्तव्य विमूढ़ हो जाता है | संस्कारो के कारण ही मनुष्य को समाज में यश समृद्धि प्राप्त होती है | मीमांस दर्शन के एक सूत्र की व्याख्या में शबर स्वामी ने संस्कार शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है |


“संस्कारो नाम स भवति यस्मिन् जाते पदार्थो भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य” अर्थात् संस्कार वह है जिसके कारण कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के योग्य हो जाता है | आचार्य चरक कहते है-‘संस्कारो हि गुणान्तराधानामुच्यते’ (चरक संहिता,विमान 1/27) अर्थात् दुर्गुणों, दोषों का परिहार तथा गुणों का परिवर्तन करके भिन्न एवं नये गुणों का आधान करने का नाम संस्कार है | मनुस्मृति में गर्भादान से लेकर अन्त्येष्टि तक षोडश संस्कारो का वर्णन आता है | ये संस्कार मनुष्य जीवन में शुभ संस्कारो का वपन करते है | हम उन्ही शुभ संस्कारो पर विचार करते है |


घर ही संस्कारो की जननी है | अत: बालक को संस्कारित करने का कार्य घर से ही करना होगा | माता ही बालक की प्रथम गुरु होती है वह उसमे आदर स्नेह सदाचार और अनुशासन जैसे गुणों का सहज में सिंचन कर देती है | परिवार रूपी पाठशाला में ही बालक अच्छे और बुरे का अंतर समझ पाता है अत: इस पाठशाला में अध्यापको माता-पिता, दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चची, आदि सभी का संयमित मर्यादित, संस्कारित धार्मिक एवं अध्यात्मिक होना आवश्यक है | तभी वे आदर्श उपस्थित कर सकते है | आज माता-पिता को समय नहीं है कि वह अपने बालक को धैर्य पूर्वक संस्कारो का सिंचन करने जैसा महत्वपूर्ण कार्य कर सके | कदाचित् माता-पिता आज भौतिक संसाधनों को उपलब्ध कराकर बच्चो को सुखी और खुश रखने की परिकल्पना करते है | किन्तु इस भ्रान्ति मूलक तथ्य को त्यागकर श्रेष्ठ संस्कार रुपी धन ही बच्चो के पास छोड़ने का मानस बनाना होगा | परिवार में संस्कार पूर्ण वातावरण बनाना होगा | माता-पिता को व्रत लेना होगा कि अपनी संतानों में ऐसे संस्कारो का वातावरण उपस्थित करे जो उत्कृष्ट कोटि के हो | भावी पीढ़ी को मनसा वाचा कर्मणा सशक्त बनाने हेतु उनमे निति, शक्ति, भक्ति, और युक्ति का सांगम करना होगा | प्रत्येक परिवार यदि अपना आंगन स्वच्छ रखना सीख ले तो पूरा समाज स्वच्छ एवं प्रकाशवान हो जायेगा | देश से भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता नष्ट हो जायेगी | और हमारा देश पुन: राम के आदर्श का देश बन जायेगा |


बच्चो को संस्कारित बनाने के लिये अभिभावक, अध्यापक और बालक तीनो को ही प्रयास करना होगा |


अभिभावक- जिन टी.वी. सीरियल या चैनलों पर आनेवाले कार्यक्रमों से बालक के मन पर गलत प्रभाव पड़े, उन्हें न स्वयं देखे और न बालको को देखने दे | प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में स्वयं जागकर बालक को जगाये और हाथो के दर्शन, प्रभुवंदन एवं बड़ो का अभिवादन करने का प्रयास कराये | महापुरषों की जीवनी एवं संस्मरणों से उसे सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे | बालक के सामने मधपान,धुम्रपान आदि का सेवन न करे |


अध्यापक- अध्यापन के साथ-साथ नैतिक उद्बोधन भी देना शिक्षक का धर्म है | छात्र-छात्राओ को अनुशासित, मर्यादित एवं संस्कारित रहने का अभ्यास कराये | महापुरुषो की जीवनी एवं सत्साहित्य के अध्ययन के लिए प्रेरित करे |


बालक- बालक को अपने माता-पिता व गुरुजनों के कथनानुसार जीवन बनाने का प्रयास करना चाहिए | कुसंगति से दूर रहकर सत्संगति करना चाहिए | मित्रो का चयन करने में सवधानी रखना चाहिए |संस्कार, नैतिकता और सद्गुणों को प्राप्त करते हुए अपने लक्ष्य की और बढ़ना चाहिए |


आशा है हमारे अभिभावक गण भी संकल्प लेंगे कि अपने परिवार में ऐसा ही वातावरण बनायेंगे जिससे हमारे विद्यालय में दिये जाने वाले संस्कार घर में भी पुष्ट हो सकेंगे | सभी को संकल्प के दशम संस्करण के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं |